दो जून की रोटी बड़े नसीब वालों को मिलती है। यह बात हम बचपन से अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते और किताबों में पढ़ते आ रहे हैं। इसके लिए लोगों को किस-किस तरह के जुगाड़ करने पड़ते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं। तो सबसे पहले आज रोटी खाइए, क्योंकि आज दो जून है।

फोटो ( राजेश इंदौरा,जयलाल वर्मा )
इन तस्वीरों में जो कॉमन बात है वह है रोटी। यानी 2 जून की रोटी ,जी हां । हर इंसान विभिन्न परिस्थितियों में भी 2 जून रोटी का जुगाड़ करता है। आज 2 जून है और आज के इस दिन को लेकर एक कहावत जोड़ी जाती है कि बहुत ही खुशकिस्मत होते हैं वो लोग जिन्हें 2 जून की रोटी नसीब होती है। 2 जून की रोटी की बात सुनने में तो ऐसी लगती है जैसे यह किसी तारीख या महीने से जुड़ी और हो लेकिन बिल्कुल नहीं 2 जून रोटी का किसी भी तारीख या महीने से लेना देना नहीं है इसको पहली बार कब प्रयोग लिया गया इसका ठीक से कोई प्रमाण नहीं मिला ।

करीब छह सौ साल पुरानी कहावत आज सच होती दिख रही वहीं, हर साल 2 जून की रोटी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगता है। इसकी बड़ी वजह है कि युवा पीढ़ी इस कहावत को आज की तारीख यानी 2 जून की रोटी से जोड़ती है। दो जून का अवध भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है दो समय या फिर दो टाइम, जिसे हम रोज की दिनचर्या में सुबह-शाम भी कह सकते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों के अनुसार, यह कहावत कोई साल दो साल या फिर दस-बीस साल से नहीं कही जा रही। यह बात हमारे पूर्वज बीते करीब छह सौ साल से प्रयोग कर रहे हैं।
लुहार डिप्टी राम ( 50) व उनकी पत्नी रोशनी (48)
रोटी के लिए दिन भर लोहा कूटते है।
दंपती ने बताया कि जिस तरह महंगाई बढ़ गई है और लोगों के लिए घर का खर्च चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है, उसमें बुजुर्गो की यह कहावत सच साबित होती दिख रही है कि दो जून की रोटी बड़े नसीब वालों को ही मिलती है। सच है कि आज घर का खर्च चलाने के लिए लोगों को तरह-तरह के पापड़ बेलने पड़ते हैं। ऐसे में दो जून की रोटी का महत्व वही समझ सकता है, जो मेहनत से कमाकर इसे खा रहा है।