कौवे को संरक्षण देने के प्रति ना केवल धार्मिक अवधारणा है, बल्कि विज्ञान जगत ने भी इस पर गहन अध्ययन किया है, जिसके अनुसार कौवे और प्रकृति तथा मानव जीवन का गहरा संबंध है।
कहा जाता है कि श्राद्ध पक्ष में कौवों को खीर-पूरी खिलाएंगे तो हमारे पूर्वजों को मिल जाएगा। असल में, हमारे ऋषि-मुनि भविष्य की सोच रखते थे, जो वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण थी। इसके पीछे उसके संरक्षण का भाव है। कौवे ऑक्सीजन के अनूठे स्रोत पीपल-बरगद के रोपण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रकृति को हरा भरा करने के साथ ऑक्सीजन की जरूरत पूरा करने के लिए कौवों को भोजन कराते हैं।
प्रकृति को सहेजने और पितरों को प्रणाम भगवान के हाथ से वैज्ञानिक विश्लेषण
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के हर्बल गार्डन के अधीक्षक डॉ. सुरेंद्र भारद्वाज ने बताया कि कौवा बरगद और पीपल के फल निगलता है। फलों के ऊपर का गुद्दा उसके पेट में पच जाता है और उसके पाचन तंत्र में गुठली के जमाव की प्रक्रिया तैयार होती है। इसकी आंतों में ऐसा एंजाइम होता है जो गुठली को अंकुरित करने के लिए अनुकूल वातावरण देता है।
पौराणिक साक्ष्यों में विशेष महत्त्व ज्योतिर्विद पं. आनंदशंकर व्यास के अनुसार …..
■ रामायण काल में कागभुषंडी थे, तो महाभारत काल में कृष्ण की बाल लीलाओं में कौवा माखन-रोटी ले गया था।
■ गरुड़ पुराण में कहा है, कौवे यमराज का संदेश वाहक होते हैं। श्राद्ध पक्ष में कौवे घर-घर जाकर खाना ग्रहण करते हैं, पितरों को तृप्ति मिलती है।
■ बरगद-पीपल के टेटे कौवे खाते हैं। उनके पेट में बीज की प्रोसेसिंग होती है। इसके बाद बीज उगने लायक होते हैं। कौवे जहां-जहां बीट करते हैं, वहां-वहां पेड़ उगते हैं।
■ पीपल एकमात्र ऐसा वृक्ष है जो 24 घंटे ऑक्सीजन देता है। बरगद के औषधीय गुण हैं। दोनों को उगाना है तो कौवों की जरूरत होगी। कौवों का संरक्षण जरूरी है।