बैल पोला त्योहार महाराष्ट्र का अनोखा त्योहार जिसमें बैलों की पूजा की जाती है। ये त्योहार छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में भी मनाया जाता है लेकिन महाराष्ट्र में इसका अलग ही महत्व है,
बैल पोला का त्यौहार भादों माह की अमावस्या को मनाया जाता है। इस अमावस्या को पिठोरी अमावस्या भी कहा जाता है।
Safarnama news Maharashtra
भारत त्योहार और उत्सवों का देश का है। ये त्योहार ना सिर्फ लोगों को अपनी परंपराओं से जोड़ते हैं बल्कि ये अहसास भी कराते हैं इस धरती पर किसी एक चीज के होने के मायने क्या हैं। और जब कोई हमारे लिए कुछ करता है तो हम भी उसके लिए कुछ करने को आतुर रहते हैं, कई बार ये शुक्रिया, धन्यवाद, एहसानमंदी उत्सव के रुप में मनाई भी जाती है। ऐसा ही एक त्योहार है बैल पोला।
बैल पोला या बैलों की पूजा, खेती में किसानों के साथी, सारथी और उसके साथ कंधे से कंधामिलकर चलने वाले बैलों का त्योहार। अपनी संस्कृति और रीति रिवाजों के लिए विख्यात महाराष्ट्र में ये त्योहार किसान धूमधाम से मनाते हैं। किसानों के लिए ये गणेश उत्सव से कम नहीं होता।
महाराष्ट्र के ज्यादातर किसानों के घरों में आज भी आपको बैल मिलेंगे। वो भले नाशिक में अंगूर, अनार और प्याज की खेती करने वाला किसान हों, मराठवाड़ा के उस्मानाबाद में सोयाबीन-ज्वार, लातूर की मशहूर अरहर उगाता हो या फिर विदर्भ के नागपुर में संतरे और यवतमाल में कपास, बड़े छोटे ट्रैक्टर होने के बावजूद उनके घरों में बैल मिलेंगे, ये बैल न सिर्फ उनकी जरुरत हैं बल्कि उनके वृहद परिवार का हिस्सा भी हैं। ये किसान बैल पोला के दिन अपने परिवार के इन्हीं पशुओं को धन्यवाद देने के लिए मनाते हैं।