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Thursday, March 23, 2023

भगत सिंह: अंग्रेज इतना डरे कि एक दिन पहले ही फांसी दे दी ,हम युद्धबंदी हैं, हमें फांसी न दें हमें तो गोलियों से उड़ाया जाए :

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15 दिन विशेष फोटो स्टोरीगुलामी से आज़ादी तक,निर्णायक पलों की कहानी

भगत सिंह: अंग्रेज इतना डरे कि एक दिन पहले ही फांसी दे दी

सोर्स : किताब- फेमस लेटर्स एंड अल्टीमेटम्स टू द ब्रिटिश गवर्नमेंट और राजगुरु, द इन विज़िबल रिवोल्यूशनरी

भगत सिंह का पंजाब के गवर्नर को पत्र
फांसी के तीन दिन पहले 20 मार्च 1931 को भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव ने यह पत्र लिखा। कहा जाता है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को जब फांसी दी गई, तब उनके चेहरे पर डर नहीं बल्कि मुस्कान थी।
हथकड़ियाें में बंधे, लेकिन सुकून से बतियाते हुए ये शख्स भगत सिंह हैं। जब उन्हें फांसी की सजा दी गई, उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 23 साल थी। 24 मार्च 1931 को उन्हें फांसी निर्धारित थी, लेकिन सरकार इनसे इतनी भयभीत थी कि एक दिन पहले ही 23 मार्च को उन्हें फांसी दे दी, ताकि लोगों को जुटने से रोका जा सके।
हमें 7 अक्टूबर 1930 को ब्रिटिश कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई है। हमारे विरुद्ध सबसे बड़ा आरोप यह लगाया गया है कि हमने इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज पंचम के खिलाफ युद्ध में भाग लिया है, इसलिए हम युद्धबंदी हैं। न्यायालय के इस निर्णय से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं- पहली यह कि अंग्रेजों और भारतीय जनता के मध्य एक युद्ध चल रहा है। दूसरी यह है कि हमने निश्चित रूप में इस युद्ध में भाग लिया है। इसलिए हम युद्धबंदी हैं।
हालांकि इस व्याख्या में बहुत सीमा तक अतिशयोक्ति है, फिर भी हम यह कहे बिना नहीं रह सकते कि ऐसा करके हमें सम्मानित किया गया है। पहली बात के सम्बन्ध में हम विस्तार से प्रकाश डालना चाहते हैं। हम नहीं समझते कि प्रत्यक्ष रूप में ऐसी कोई लड़ाई छिड़ी हुई है। हम नहीं जानते कि युद्ध छिड़ने से न्यायालय का आशय क्या है? परंतु हम इस व्याख्या को स्वीकार करते हैं और साथ ही इसे इसके ठीक संदर्भ में समझाना चाहते हैं।
हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी, जब तक कि मुट्ठी भर परजीवी, मेहनतकश भारतीय जनता और प्राकृतिक संसाधनों का शोषण करते रहेंगे। शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर एकाधिकार कर रखा है- चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज पूंजीपति या भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी रखी है।

 


यदि आपकी सरकार कुछ नेताओं या भारतीय समाज के मुखियाओं पर प्रभाव जमाने में सफल हो जाए अथवा समझौते हो जाए, इससे भी स्थिति नहीं बदल सकती। हमें इस बात का भी भय नहीं है कि हमारे राजनीतिक नेता पथ-भ्रष्ट हो गए हैं और वे समझौते की बातचीत में निरपराध, बेघर और निराश्रित बलिदानियों को भूल गए हैं, जिन्हें दुर्भाग्य से क्रांतिकारी पार्टी का सदस्य समझा जाता है।
हो सकता है कि यह लड़ाई भिन्न-भिन्न दशाओं में भिन्न-भिन्न स्वरूप ग्रहण करे। किसी समय यह लड़ाई प्रकट रूप ले ले, कभी गुप्त रूप से चलती रहे, कभी भयानक रूप धारण कर ले, कभी किसान के स्तर पर युद्ध जारी रहे और कभी यह घटना इतनी भयानक हो जाए कि जीवन और मृत्यु की बाजी लग जाए। चाहे कोई भी परिस्थिति हो, इसका प्रभाव आप पर पड़ेगा। बहुत संभव है कि यह युद्ध भयंकर स्वरूप ग्रहण कर ले। पर निश्चय ही यह उस समय तक समाप्त नहीं होगा जब तक कि समाज का वर्तमान ढांचा समाप्त नहीं हो जाता, प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन या क्रांति समाप्त नहीं हो जाती और मानवीय सृष्टि में एक नवीन युग का सूत्रपात नहीं हो जाता।
निकट भविष्य में अंतिम युद्ध लड़ा जाएगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। हमें स्वयं पर गर्व है कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा। जहां तक हमारे भाग्य का संबंध है, हम जोरदार शब्दों में यह कहना चाहते हैं कि आपने हमें फांसी पर लटकाने का निर्णय कर लिया है। आप ऐसा करेंगे ही। आपके हाथों में शक्ति है और आपको अधिकार भी प्राप्त है। हम आपसे किसी प्रकार की दया की प्रार्थना नहीं कर रहे हैं। हम केवल यह प्रार्थना करना चाहते हैं कि हम युद्धबंदी हैं, अत: इस आधार पर हम मांग करते हैं कि हमारे प्रति युद्धबंदियों जैसा ही व्यवहार किया जाए और हमें फांसी देने के बदले गोली से उड़ा दिया जाए।

 

अब यह सिद्ध करना आपका काम है कि आपको उस निर्णय में विश्वास है जो आपकी सरकार की न्यायालय ने किया है। आप अपने कार्य द्वारा इस बात का प्रमाण दीजिए। हम विनयपूर्वक आप से प्रार्थना करते हैं कि आप अपने सेना-विभाग को आदेश दे दें कि हमें गोली से उड़ाने के लिए एक सैनिक टोली भेज दी जाए।
– भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव

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