Jailal verma charanwasi
दुधारू पशुओं में दिनों वायरस जनित लंपी स्किन रोग के आने की संभावना को देखेते हुए कृषि विज्ञान केंद्र नोहर के पशु विशेषज्ञय डॉ.रामचन्द्र तिवाड़ी ने जारी की एडवाइजरी। तिवाड़ी ने बताया कि गंाठदार त्वचा रोग खासकर गायों और भैंसों की एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी हंै। जिसका दुध का सेवन करने से मनुष्यों पर प्रभाव नहीं पड़ता। रोग मच्छर,मक्खियों,कीड़ों के काटने से फैलता है।
प्रदेश में संक्रमण फैल रहा हैं। लेकिन दुधारू पशुओं में यह रोग एक बार होने के बाद आर्थिक रूप से पशुपालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। पशुओं के मुँह,गर्दन,थनों और जननांगों के आसपास की त्वचा पर 50 मिमी व्यास तक के सख्त, उभरे हुए नोड्यूल से गांठे विकसित होते हैं। गांठों के फूटने से बड़े छेद हो जाते हैं जिनसे तरल निकलता रहता है जिससे संक्रमण और ज्यादा फैलता है। सूजन, आंखों में पानी आना। नाक और लार के स्राव में वृद्धि। रोग वाले कुछ जानवर स्पर्शोन्मुख हो सकते हैं (बीमारी है लेकिन लक्षण नहीं दिखाते सहित बहुत तेज बुखार तथा दूध के उत्पादन में अचानक कमी आना रोग के लक्षणों में शामिल हैं। रोग मच्छरों ,मक्खियों व जूं के साथ पशुओं की लार तथा दूषित जल,भोजन के माध्यम से फैलता हैं।
रोग का इलाज: रोग रोकथाम व नियंत्रण का सबसे प्रभावी साधन टीकाकरण है। एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग,हर रोज सफाई करने व उचित दवाओं से चार-पांच दिन में रोग रहित हो जाता हैं पशु। वहीं संक्रमित पशु की डेयरी में आवाजाही कम,पशु को अलग रखने की व्यवस्था कर रोग फैलने से बचा जा कसता हैं।
उपचार एवं रोकथाम ;-
यह एक विषाणु जनित बीमारी है। इसका पूर्ण रूप से ईलाज संभव नहीं है। लेकिन फिर भी इसका लक्षण आधारित उपचार किया जा सकता है । इस बीमारी को अन्य पशुओं मे फैलने से रोकने के लिए एवं नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय जरूर करने चाहिए –
उचित प्रबंधन, स्वच्छता एवं रखरखाव :–
- इस बीमारी से बचाव के लिए जैव सुरक्षा (बायो सिक्योरिटी) रखनी चाहिए ।
- पशुओं के आवास की सम्पूर्ण रूप से साफ सफाई एवं निस्संक्रामक दवाइयों का उपयोग करना चाहिए।
- बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
- समय- समय पर पशुचिकित्सकों द्वारा पशुओं की जाँच करवाना चाहिए ।
- भोजन – पानी एवं दवाइयों का समय के हिसाब से उचित प्रबंधन होना चाहिए ।
- पशुओं के आवास में नमी, प्रकाश आदि चीजों का सम्पूर्ण रूप से ध्यान रखना चाहिए।